वागीश कुमार झा
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अब तो जिन्न बोतल से बाहर आ चुका हैI इसे वापस बोतल में डालना असंभव है, प्रगति का यह तीर वापस कमान में नहीं आ सकता.
यह एक दुःस्वप्न था, जैसे अचानक सुनामी आता है. अब सवेरा हो चुका है, हमें वापस अपने पुराने, समय सिद्ध तरीके पर आना होगा.
डिजिटल तरीके से पढ़ाई के बारे में शिक्षकों और विद्वानों की सोच के ये दो ध्रुव हैं. इसकी पृष्ठभूमि में कोविड नाम की एक ऐसी वैश्विक विभीषिका है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने द्वितीय विश्व से भी बड़ा सामूहिक सदमा कहा है.
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दो साल से थोड़ा पहले कोरोना का नाम तक लोगों ने नही सुना था. लेकिन इस अतिसूक्ष्म विषाणु ने एक झटके में जैसे वैश्विक भूचाल ला दिया. देखते-देखते चांद और मंगल पर जाने वाली मानव सभ्यता सकते में आ गई. विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बल पर प्रकृति पर नियंत्रण करने का दंभ एकदम से धराशयी हो गया. पूरी मानवता अपने-अपने घरों में दुबक गई. अपने घर में भी नकाबपोश होने के बावजूद एक अजीब और अज्ञात डर का माहौल चारो तरफ छा गया. दुनियां भर के स्कूल बंद हो गए. इस औचक वैश्विक महामारी के जल्दी समाप्त होने की कोई संभावना नजर नहीं आने लगी. ऐसे संकट में क्या पढ़ाई खत्म हो जाएगी? बच्चों के भविष्य का क्या होगा?
ऐसे तमाम यक्ष प्रश्नों के बीच टेक्नोलॉजी एक परित्राता, एक उद्धारक की तरह सामने आया. दुनिया भर के शिक्षक इस चुनौती का ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से सामना करने में जुट गए. जो स्कूल वीरान हो गए थे, वो बच्चों के घर तक पहुंच गए. शिक्षकों ने अदम्य साहस, कल्पना और कौशल का परिचय देते हुए शिक्षा के मिशन को रुकने नहीं दियाI जो शिक्षक कभी कंप्यूटर को अतरंगी चीज समझ कर शिक्षा के लिए खलल मानते रहे, वे भी अब लैपटॉप या मोबाइल से पढ़ाने में जुट गए. जो मां-बाप अपने बच्चो को मोबाइल से कोसों दूर रखने की जद्दोजहद में पड़े रहते थे, वही अब उनके लिए अलग से फोन खरीद कर देने लगे.
इस क्रम में शिक्षा के तरीके में एक बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ. शिक्षकों के टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल करने में बच्चे उनके शिक्षक हो गए थे. “सर, वो ऊपर वाली तीन खड़ी बिंदी पर क्लिक कीजिए तो विकल्प खुलेगा.” “नीचे स्पीकर वाले आइकॉन पर क्लिक करेंगे तो आवाज आएगी.” शिक्षकों ने विद्यार्थियों के इन निर्देशों पर सहजता और विनम्रता से अमल करना शुरू किया. यह अनोखा दृश्य था. चुप रहो की जगह म्यूट करो का प्रयोग होने लगा. अभिभावक जो अपने बच्चों को केवल स्कूल छोड़ आने और वापस ले आने से मतलब रखते थे, वे अब अपने बच्चों की शिक्षा की प्रक्रिया में भागीदार बन गए थे.
“आप तो कंप्यूटर के बटन को दबाने से भी कतराते थे, आपने कैसे किया ये सब?” मैंने एक शिक्षक मित्र से पूछाI उन्होंने कहा, “जब बीच नदी में नाव डूबने लगे तो तैरना सीखना ही जान बचा सकता हैं न, मरता क्या न करताI” शिक्षण टेक्नोलॉजी अब एक विकल्प नहीं नितांत आवश्यकता बन चुकी थी.
मेरी समझ में इस काल में शिक्षा के क्षेत्र में जो सबसे मौलिक परिवर्तन हुआ वो ये कि विद्यार्थी और शिक्षक दोनो सहपाठी बन गए थे, एक दूसरे से सीखने और सिखाने वालेI NCF (नेशनल करिकुलर फ्रेमवर्क) जिस constructivist शिक्षा की बात करता रहा जहां शिक्षक और विद्यार्थी दोनो मिल कर ज्ञान का निर्माण करते हैं, वो अब व्यवहार में उतर चुका था. जो काम तमाम तरह के और निरंतर शिक्षक प्रशिक्षण के कार्यक्रम नहीं कर पाए, वो इस असामान्य परिस्थिति में सहज लागू हो गया था. आगे की कहानी शिक्षकों और छात्रों के सीखने की एक रचनात्मक श्रृंखला की कहानी है.
अब जब स्कूल खुल चुके हैं, तो दो तरह के विचार सामने आ रहे हैं जिनका जिक्र इस लेख के शुरू में किया गया है. देश के विभिन्न भागों के शिक्षकों से बात करते हुए जब हमने उनसे यह प्रश्न पूछा कि वे अब स्कूली शिक्षा का भविष्य कैसा देखते हैं?
a) पहले की तरह क्लास में आमने-सामने की पढ़ाई जारी रहेगी?
b) online पढ़ाई जारी रहेगी?
c) फिजिकल और डिजिटल दोनो को मिला कर, मिश्रित पद्धति / Blended Learning से पढ़ाई जारी रहेगी?
तो अधिकांश शिक्षकों ने कहा कि मिश्रित पद्धति अपनाना जरूरी होगा. डिजिटल पढ़ाई को अब एकदम छोड़ा नहीं जा सकता.
यहां एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता हैI क्या COVID के दौरान हम जिस तरह बच्चों को मोबाइल या लैपटॉप से पढ़ाते थे उसे हम डिजिटल शिक्षण (Digital Pedagogy) पद्धति कहेंगे? इस पर मतैक्य नहीं हैI कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि डिजिटल साधनों से जो पढ़ाई की जा रही थी वो डिजिटल शिक्षण पद्धति है. वहीं कुछ अन्य शिक्षकों का मानना है कि मध्यम चाहे डिजिटल क्यों न हो, पढ़ने का ढंग, शिक्षण पद्धति तो वही थी जो आमने-सामने बैठे क्लास में अपनायी जाती थी, तो यहां बच्चों तक पहुंचने के लिए डिजिटल माध्यम का प्रयोग किया गया पर ये डिजिटल शिक्षण पद्धति नहीं कही जा सकती है. आप क्या सोचते हैं?
इस प्रश्न को ठीक से समझने के लिए हमें यह सोचना होगा कि डिजिटल का उल्टा क्या होता है? अंग्रेजी में डिजिटल का विपरीतार्थक शब्द होगा ‘एनालॉग’. डिजिटल और एनालॉग के अंतर को समझने के लिए एक उदाहरण देना बेहतर होगा.
हम लोगों में से कई लोगों ने कुछ ही सालों पहले तक कैसेट देखा होगा, फिल्म या गाने के कैसेट जिसमे प्लास्टिक की एक मैग्नेटिक रील होती थी. उसे चलाने पर आप एक क्रम में ही वीडियो देख सकते थे या गाने सुन सकते थे. ये एनालॉग सिस्टम है- एक रैखिक, क्रमिक. लेकिन आज जब हम सीडी का उपयोग करते हैं तो किसी समय किसी भी ट्रैक पर जा सकते हैं, अपनी मर्जी से. आपको आठवां गाना सुनना है तो सीधे वही सुन सकते हैं, 35 मिनट के बाद वीडियो देखना है तो सीधे वहीं से देख सकते हैंI डिजिटल इस अर्थ में स्वतंत्रता देता है कि आप 1 के बाद 7 और फिर 6 नंबर के गाने को सुन सकें. यह बहु-रैखिक, बहु-आयामी मध्यम है जो 0,0,1,1 के सिद्धांत पर काम करता है, जिसके चलते इसे अंकीय या डिजिटल कहा जाता है. इसमें लिखित शब्द से सीधे बोलने या वीडियो या एनीमेशन जैसे संसाधनों पर जाया जा सकता है या फिर कहीं रुक कर आकलन भी किया जा सकता है.
कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा तो क्लास में शिक्षक सामान्य अवस्था में, बिना डिजिटल मध्यम के भी करते थेI TLM (टीचिंग लर्निंग मैटेरियल) का इस्तेमाल तो कब से हो रहा है! बिल्कुल ठीकI यहां इसे रेखांकित करना जरूरी है कि डिजिटल और फिजिकल या एनालॉग या तो ये या वो (either / or) की स्थिति नहीं है. कई जगहों पर शिक्षण के भौतिक संसाधन अधिक कारगर होते हैं. मसलन, बच्चे को ठोस, तरल की समझ के लिए वीडियो दिखाने की जगह एक गेंद या एक ग्लास पानी देकर बेहतर समझाया जा सकता है. लेकिन अगर हमें पानी की आणविक संरचना बताना हो, या हड़प्पा में बने घरों का 3D एनीमेशन दिखाना जिससे उनमें बेहतर समझ पैदा की जा सकती है, तो यह डिजिटल संसाधन काफी कारगर साबित होंगे.
डिजिटल औजारों ने शिक्षण के क्षेत्र में तीन बड़े काम किए हैं- इसे UDL (Universal Design Learning / सार्वभौमिक शिक्षण डिजाइन) के परिप्रेक्ष्य में समझने से बात और साफ होगीI इसकी तीन धुरी हैं:
पहला, डिजिटल माध्यम विषय के निरूपण या वर्णन करने के विविध साधन उपलब्ध कराती है जो शिक्षार्थी को ज्ञान अर्जन के एकाधिक तरीके प्रदान करते हैं. आप किताब पढ़ें, जो लिखा है उसे पढ़ने की बजाय सुन लें, वीडियो देखें, एनीमेशन देखें, पॉडकास्ट सुने… ऐसे अनेक शैक्षिक संसाधन उपलब्ध हैं जो एक विषय, एक अवधारणा को अलग-अलग तरीके से समझने का अवसर देती है.
दूसरा, यह विद्यार्थियों को अपनी समझ, अपने ज्ञान को विभिन्न तरीकों से अभिव्यक्त करने का अवसर प्रदान करती है. तो आज विद्यार्थी अपनी समझ को व्यक्त करने के लिए अनेक माध्यमों का उपयोग कर सकते है- लिख कर, बोल कर, वीडियो बना कर, आदि-आदि.
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तीसरा, विषय में रुचि बढ़ने के लिए, एंगेजमेंट यानी एक विषय में उनके जुड़ाव के लिए, बहुल तरीके अपनाना जो बच्चों को अलग-अलग ढंग से विषय की ओर आकर्षित कर सकें, उनको एक मजेदार और चुनौतीपूर्ण माहौल दे कर पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित कर सकें.
यहां शिक्षक की भूमिका केंद्रीय हो जाती है कि किस समय किस तरह की शिक्षण विधि/ पेडागॉजी का उपयोग किया जाए. ऐसे में पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि और टेक्नोलॉजी का युक्तिसंगत ढंग से प्रयोग करना डिजिटल पेडागोजी की मूल आत्मा है.
इस तरह यह स्पष्ट है कि डिजिटल माध्यमों का उपयोग करने वाले शिक्षकों के लिए शिक्षण विधि के अनेक आयाम खुल जाते हैं, वे विविध प्रकार के शिक्षण विधि की संभावनाओं से युक्त हो जाते हैं. इस नए समय, नई दुनिया में नए प्रकार के डिजिटल शिक्षण का अभ्युदय शिक्षकों को स्वयं को एक नए अवतार में ढालने की जरूरत को रेखांकित करता है.